प्रस्तुत पद्यांश उमापति द्वारा विरचित ‘पारिजात हरण’ सँ लेल गेल अछि। एहि कविता मे कवि शिरोमणि नायिकाक भ्रमित मनोदशाक मर्मस्पर्शी अभिव्यंजना अछि। श्री कृष्णक अनन्य सखा उद्धव गोकुल गेल रहथि। ओतए सँ घुरला उत्तर ओ श्री कृष्ण सँ राधाक दशाक वर्णन करैत कहैत छथि – हे माधव अहाँ सँ मधुर प्रेम कें सहेजी कए राधा तँ धनिक विशेष भए गेल छथि। अहाँक विरह पीड़ा मे हुनक हृदयक दशा विचित्र अछि। अपनहि आनन कें दर्पण मे देखि देखि दर्शनक आनंद पबैत छथि। कए बेरि अपनहिं आनन केँ ओ वास्तविक चन्द्र बुझि झेंपि उठैत छथि। अपन वक्षस्थल पर अपनहि हाथ रखला उत्तर हुनका अर्ध प्रस्फुटित युगल सरिस सुमनक भ्रम भए जाइत छेन्हि।एतबे धरि नहि बिरहक ताप सँ व्याकुल भए कए ओ बेरि बेरि अपनहि पयोधर केँ कमल बुझि शीतलता वा शान्ति प्राप्त करबाक हेतु धरई छथि। जखन तखन अपनहि कारी केशराशि केँ कृष्ण धन बुझि प्रिय वियोग जन्य दुःख सँ व्याकुल भए जाइत छथि। कए बेरि तँ अपनहि बाजब केँ कोकिल स्वर बुझि हरिक नाम रटए लगैत छथि आ रटैत रटैत पात्रक उत्सर्ग करबा लेल उधृत भए जाइत छथि। हे माधव राधा कें देखय लेल अहाँ गोकुल अवश्य जाउ। अहाँ सत्पुरुष छी। एहि प्रकारक व्यथाक निदान मे सत्पुरुष तँ किन्नहुँ निष्ठुर नहि होइत छथि।