डा.प्रशान्त कुमार मनोज,सहायक अतिथि प्राध्यापक,मैथिली विभाग,एम एल टी कॉलेज सहरसा।
बी.ए.(प्रतिष्ठा) तृतीय पत्र।प्रतिपदा मे संकलित ‘हलधर’ कविताक भावार्थ-प्रतिपदा मे संकलित ‘हलधर’ कविताक रचनाकार सुरेंद्र झा ‘सुमन’ जीक कविता मे प्राचीन परंपराक अनुसरण मे आधुनिकताक छाप परिलक्षित होइत अछि। जतय ‘श्मशान’ मे साम्यवादी भावना अछि तँ ‘हलधर’ तथा ‘युग नवीन’ मे प्रगतिवादी भावना परिलक्षित होइत अछि। एहि मे बौद्धिकता आ व्यंग्यक माध्यम सँ निम्न वर्गक कचोट तथा उत्पीड़न अछि। एकटा प्रगतिवादी कवि अपन समाजक, देशक तथा राष्ट्रक वैषम्य केँ हटा कए समाज मे मंगलमय प्रभात सृजन करबाक कामना सँ अभिप्रेरित रहैत छथि।
हलधर कविता मे ठाम ठाम प्रकृतिक लावण्यमयी सुषमा दिश कविक दृष्टि गेल अछि। युग युगांतर सँ उपेक्षित हरवाह लोकनिक दयनीय दशा पर जखन कविक दृष्टि पड़ैत छैन्हि तखन ओ हुनका लोकनि केँ सम्बोधित कए अपन मनक अनुभूति केँ व्यक्त करैत छथि। एहि कविता मे कवि तीन गोट हलधर मे एकटा द्वापर युगक हलधर ‘जनक’, दोसर त्रेता युगक हलधर ‘बलराम’ आ तेसर युग युगांतर सँ चिर परिचित हलधर जेकरा गाम घर मे ‘हरवाह’ कहल जाइछ ओहि केँ वर्णन कएने छथि।
प्रतिपदाक हलधर मे सुमन जी प्राचीनता तथा आधुनिकता दुनुक संधि स्थल पर ठाढ़ छथि। तेँ एहि कविता मे प्रगतिवाद आ साम्यवादक प्रभाव अछि। एतबे नहि वैज्ञानिक लोकनिक तुलना मे किसानक तुलना कवि सेहो कएने छथि।